सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह उन वकीलों को वरिष्ठ पदनाम देने के आवेदनों पर नए सिरे से विचार करे, जिनके आवेदन या तो खारिज कर दिए गए या स्थगित कर दिए गए थे.
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि वह उन वकीलों को वरिष्ठ पदनाम देने के आवेदनों पर नए सिरे से विचार करे, जिनके आवेदन या तो खारिज कर दिए गए थे या स्थगित कर दिए गए थे. जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि उचित समाधान यह होगा कि हाई कोर्ट को निर्देश दिया जाए कि वह स्थगित और खारिज किए गए उम्मीदवारों के मामलों पर दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम नियम, 2024 के अनुसार विचार करे.
302 आवेदकों में से 70 को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में किया गया था नामित
अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया मुद्दा यह है कि एक सदस्य द्वारा दिए गए अंकों पर विचार नहीं किया गया. पीठ ने कहा कि रजिस्ट्रार जनरल 2024 नियम के नियम 3 के अनुसार स्थायी समिति के पुनर्गठन के लिए कदम उठाएंगे. स्थगित और अस्वीकृत आवेदकों के आवेदनों को फिर से स्थायी समिति के समक्ष रखा जाएगा, जिस पर नियम 2024 के अनुसार कार्रवाई की जाएगी. सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि 302 आवेदकों में से 70 को नवंबर 2024 में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था, जबकि 67 उम्मीदवारों के आवेदन स्थगित कर दिए गए थे और बाकी को खारिज कर दिया गया था.
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय से वरिष्ठ पदनाम प्रदान करने की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करने को कहा. कथित अनियमितताओं के आधार पर नवंबर, 2024 में 70 वकीलों को वरिष्ठ पदनाम प्रदान करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को एक याचिका में चुनौती दी गई है. उच्च न्यायालय ने 12 महिलाओं सहित 70 वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया. स्थायी समिति द्वारा उम्मीदवारों का मूल्यांकन करने के बाद वरिष्ठ पदनाम प्रदान किए गए. 300 से अधिक वकीलों ने प्रतिष्ठित वरिष्ठ टैग के लिए आवेदन किया, जिसे सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा वकील की क्षमता, अदालती कौशल और कानूनी कौशल की मान्यता के रूप में प्रदान किया जाता है.
वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करने के मामले में “गंभीर आत्मनिरीक्षण” की आवश्यकता
शीर्ष अदालत ने 20 फरवरी को कहा था कि वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करने के मामले में “गंभीर आत्मनिरीक्षण” की आवश्यकता है और इस मुद्दे को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को यह तय करने के लिए भेजा कि क्या एक बड़ी पीठ को मामले की सुनवाई करनी चाहिए. अपनी आपत्तियों को व्यक्त करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह संदिग्ध है कि कुछ मिनटों के लिए किसी उम्मीदवार का साक्षात्कार लेने से वास्तव में उसके व्यक्तित्व या उपयुक्तता का परीक्षण किया जा सकता है.
पीठ ने कहा कि जिस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है, वह यह है कि क्या न्यायालय को पदनाम प्रदान करने के लिए आवेदन करने की अनुमति देनी चाहिए, हालांकि कानून में ऐसा प्रावधान नहीं है. यदि विधानमंडल अधिवक्ताओं को पदनाम के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का इरादा रखता है, तो धारा 16 की उपधारा (2) में इस न्यायालय या उच्च न्यायालयों को पदनाम प्रदान करने से पहले अधिवक्ताओं की सहमति लेने का प्रावधान नहीं होता. अधिवक्ता अधिनियम की धारा 16 वकीलों के वरिष्ठ पदनाम से संबंधित है.
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