One Nation One Election: भाजपा की हर राज्य में इस तरह की बैठकें हो रही हैं. सुनील बंसल उस हाईपावर कमेटी का हिस्सा हैं, जिसका गठन ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर जनता की राय लिए बनाया गया है.
One Nation One Election: भारतीय जनता पार्टी देशभर में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ लागू करने को लेकर काफी गंभीर नजर आ रही है. इसी सिलसिले में आज दिल्ली में भाजपा के कार्यालय में एक बैठक आयोजित हुई. इस बैठक में दिल्ली के MLA शामिल हुए, जहां ‘One Nation One Election’ पर बातचीत हुई. ये बैठक ऐसे में बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है जब बिहार में अक्तूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और इसके बाद 2026 में तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं.
कौन-कौन बैठक में हुआ शामिल
बैठक में भाजपा के कई प्रमुख नेता मौजूद रहे, जिनमें दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा, मंत्री पंकज सिंह, रविंद्र इंद्रराज, सांसद योगेंद्र चंदोलिया, सांसद कंवलजीत सहरावत, विधायक सतीश उपाध्याय, हरीश खुराना जैसे बड़े नेता शामिल हुए.=
जानकारी के लिए बता दें कि भाजपा की हर राज्य में इस तरह की बैठकें हो रही हैं. सुनील बंसल उस हाईपावर कमेटी का हिस्सा हैं, जिसका गठन ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर जनता की राय लिए बनाया गया है. इससे पहले भी सुनील बंसल कई राज्यों में इस तरह की बैठक करा चुके हैं. दिल्ली में भी इसी सीरीज के तहत बैठक हुई है. इस बैठक में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर भाजपा की नीति और पार्टी की रूपरेखा को लेकर रणनीति पर विस्तार से बातचीत होगी.
क्या हैं वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे
वन नेशन वन इलेक्शन का अर्थ है भारत में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ करवाना. इसका प्रमुख फायदा समय, संसाधनों और धन की बचत है. बार-बार होने वाले चुनावों के कारण सरकार का ध्यान विकास कार्यों से हटकर चुनावी तैयारियों पर चला जाता है, और मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू होने से नीतिगत निर्णय रुक जाते हैं. एक साथ चुनाव होने से प्रशासनिक मशीनरी, जैसे पुलिस और सरकारी कर्मचारी, एक बार में ही व्यस्त होंगे, जिससे शासन प्रक्रिया सुचारू रहेगी. इसके अलावा, राजनीतिक दलों को बार-बार प्रचार पर भारी खर्च नहीं करना पड़ेगा, जिससे काले धन का उपयोग और भ्रष्टाचार कम हो सकता है. यह मतदाताओं के लिए भी सुविधाजनक होगा, क्योंकि उन्हें बार-बार मतदान के लिए नहीं जाना पड़ेगा.
दूसरा बड़ा फायदा नीतिगत स्थिरता और शासन की निरंतरता है. वर्तमान में अलग-अलग समय पर होने वाले चुनाव सरकारों को अल्पकालिक लोकलुभावन नीतियों की ओर धकेलते हैं, जिससे दीर्घकालिक विकास योजनाएँ प्रभावित होती हैं. एक साथ चुनाव होने से सरकारें पूरे कार्यकाल के लिए नीतियाँ बना सकेंगी, जिससे आर्थिक और सामाजिक विकास को गति मिलेगी. साथ ही, बार-बार चुनावी प्रचार के कारण सामाजिक तनाव और ध्रुवीकरण की घटनाएँ भी कम हो सकती हैं. हालांकि, इसके लिए संवैधानिक संशोधन और सभी राज्यों की सहमति जरूरी है.
ये भी पढ़ें..SC के खिलाफ बयान निशिकांत दुबे को पड़ेगा भारी, ऐसे मामलों पर क्या कहता है Courts Act, 1971 ?