Bollywood News: चाहे वो इतिहास की झलक हो या भविष्य की कल्पना – जब सेट बोलते हैं, तो दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.इन पांच फिल्मों ने यह साबित किया कि एक भव्य सेट सिर्फ दिखावे का साधन नहीं बल्कि कहानी कहने का एक प्रभावशाली माध्यम होता है.
बॉलीवुड में कहानी और अभिनय जितना ही बड़ा स्थान अब विज़ुअल ग्रैंडियर को भी मिलने लगा है. इन पांच फिल्मों ने यह साबित किया कि एक भव्य सेट सिर्फ दिखावे का साधन नहीं बल्कि कहानी कहने का एक प्रभावशाली माध्यम होता है. जब निर्देशक का विजन, निर्माता का बजट और आर्ट डायरेक्टर की कल्पना मिलती है, तो करोड़ों खर्च कर बनाए गए सेट सिर्फ पर्दे की पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि फिल्म की आत्मा बन जाते हैं.
बाजीराव मस्तानी

संजय लीला भंसाली की फिल्मों का नाम आते ही सबसे पहले आंखों के सामने उनकी भव्यता और ऐतिहासिकता उभरती है. ‘बाजीराव मस्तानी’ इसका सबसे शानदार उदाहरण है. पेशवा बाजीराव और मस्तानी के महलों, दरबारों और युद्धभूमियों को दर्शाने के लिए ऐसे सेट्स तैयार किए गए जिन्हें देखकर दर्शक असली इतिहास में खो जाएं. मुंबई के फिल्मसिटी में रचे गए इन सेट्स पर लगभग 45 करोड़ रुपये खर्च किए गए. राजपूती और मराठा वास्तुकला की झलक, भारी-भरकम झूमर, पत्थरों से बनी दीवारें और ऐतिहासिक युद्ध की तैयारी को जीवंत करने के लिए आर्ट डायरेक्शन को महीनों की तैयारी करनी पड़ी. यह फिल्म सिरे से साबित करती है कि सेट डिज़ाइन एक फिल्म की आत्मा हो सकती है.
पद्मावत

पद्मावत’ को संजय लीला भंसाली की सबसे विवादास्पद लेकिन सबसे खूबसूरत फिल्मों में गिना जाता है. रानी पद्मावती का महल, राजा रतन सिंह का दरबार, और चित्तौड़ का किला – इन सभी को फिर से रचने के लिए फिल्म के निर्माता ने भव्यता की हर सीमा को पार कर दिया. इन सेट्स को बनाने में लगभग 35-40 करोड़ रुपये की लागत आई. हर पत्थर, हर दीवार, हर कोना इतिहास की गवाही देता नजर आता है. खास बात ये रही कि सेट्स को वास्तविक लोकेशनों जैसा दिखाने के लिए आर्किटेक्ट्स और इतिहासकारों की मदद ली गई। यह सेट सिर्फ विजुअल ट्रीट नहीं, बल्कि राजस्थानी गौरव और परंपरा का जीवन्त प्रदर्शन था.
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मुगल-ए-आजम

के. आसिफ की ‘मुगल-ए-आज़म’ को भारतीय सिनेमा की कालजयी फिल्म माना जाता है, लेकिन इसके रंगमंचीय संस्करण ने भी इतिहास रचा. इस संस्करण के लिए जिस तरह के सेट्स बनाए गए, उन्होंने थिएटर की सीमाओं को तोड़ दिया। शीशमहल जैसा चमचमाता मंच, मयूर सिंहासन और मुग़ल दरबार की भव्यता को फिर से जिंदा करने के लिए निर्माता फिरोज अब्बास खान ने करीब 15 करोड़ रुपये खर्च किए. यह थिएटर का ऐसा अनुभव था जहां दर्शकों को लगा कि वे सिनेमा नहीं, एक चलती-फिरती इतिहास की किताब देख रहे हैं.
रामलीला

‘रामलीला’ में भंसाली ने गुजरात की रंगीन संस्कृति और लोककला को पर्दे पर उतारने के लिए बेहद विशिष्ट आर्ट डायरेक्शन का सहारा लिया. मुंबई के स्टूडियो में ही ऐसी गलियां, मंदिर और हवेलियां बनाई गईं जिनमें पारंपरिक कारीगरी और स्थानीय रंगत साफ झलकती थी. लगभग 20 करोड़ रुपये का खर्च कर निर्मित इन सेट्स में हर छोटी चीज़, जैसे मंदिर की घंटी, घरों की खिड़कियों के झरोखे, और चौक की रंगोली तक पर विशेष ध्यान दिया गया। फिल्म का हर फ्रेम एक पेंटिंग सा लगता है, जिसका रंग और साज-सज्जा दर्शक को बांधे रखता है.
रा.वन

जब टेक्नोलॉजी और सेट डिजाइन ने रचा भविष्य, शाहरुख खान की महत्वाकांक्षी फिल्म ‘रा.वन’ को भारत की पहली मेगा बजट साइंस-फिक्शन फिल्मों में गिना जाता है. इस फिल्म में सिर्फ वीएफएक्स ही नहीं, बल्कि फ्यूचरिस्टिक सेट्स का भी अहम योगदान था. अत्याधुनिक लैब, हाई-टेक कंट्रोल रूम, और गेम वर्ल्ड जैसे सेट्स को तैयार करने के लिए इंटरनेशनल डिजाइन टीम को जोड़ा गया और लगभग 25 करोड़ रुपये खर्च किए गए. ये सेट्स फिल्म के साइंस-फिक्शन टोन को सपोर्ट करने के लिए बनाए गए थे और भारतीय सिनेमा में तकनीकी क्रांति का प्रतीक बने.
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