सेबी जब भी गंभीर मामले पाता है, तो कार्रवाई करता है और एक ऐसा मजबूत मामला बनाने का प्रयास करता है, जिससे पक्ष में निर्णय आ सके.
Mumbai: सेबी के अध्यक्ष तुहिन कांता पांडे ने धोखाधड़ी करने वालों को चेताया है. कहा कि धोखाधड़ी कर बचना मुश्किल है. पांडे ने कहा कि भारत में धोखाधड़ी से निपटने के लिए पर्याप्त जांच मौजूद है. जब भी कोई घोटाला सामने आता है तो किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए कि प्रणाली काम नहीं कर रही है. बहुत सारे खुलासे हो रहे हैं.बहुत सारे ऑडिटर अपना काम कर रहे हैं. इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि सिस्टम वास्तव में काम नहीं कर रहे हैं.
नियमों का उल्लंघन या धोखाधड़ी करने वालों की संख्या चिंता का विषय
पांडे ने पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में बताया कि नियमों का उल्लंघन करने वाले या धोखाधड़ी करने वाले लोगों की संख्या चिंता का विषय हो सकती है, लेकिन वे बच जाएंगे, ऐसा संभव नहीं है. हाल ही में एक निजी क्षेत्र के बैंक से जुड़े मामले के बारे में पूछे जाने पर पांडे ने सीधा जवाब देने से परहेज किया, लेकिन कहा कि विनियामक हमेशा ऐसे मामलों को देखता है और अंदरूनी व्यापार को बहुत गंभीरता से लेता है. उन्होंने कहा कि सेबी जब भी गंभीर मामले पाता है, तो कार्रवाई करता है और एक ऐसा मजबूत मामला बनाने का प्रयास करता है जो कानूनी चुनौतियों से बच सके.
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सर्वोच्च न्यायालय के 80 प्रतिशत आदेश नियामक के पक्ष में
उन्होंने कहा कि सेबी के आदेश विस्तृत होने चाहिए, जांच विस्तृत होनी चाहिए. उन्हें अदालतों की जांच का सामना करना होता है. पांडे ने सेबी के आदेशों को चुनौती दिए जाने के मामले में नियमित विफलताओं की धारणाओं से इनकार किया. वित्त वर्ष 2025 के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण ने सेबी के 92 प्रतिशत आदेशों को बरकरार रखा और कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में 80 प्रतिशत आदेश नियामक के पक्ष में गए हैं. वाइटल कम्युनिकेशंस मामले में कथित झटके पर टिप्पणी करते हुए पांडे ने कहा कि मामले में सेबी द्वारा उठाए गए तीन मुद्दों में से दो को सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की है.
उन्होंने कहा कि नियामक जांच के मामले में पारदर्शी होना चाहता है. इस सवाल का जवाब देते हुए कि कैसे अधिकारी जो खुद विवादित हो सकते हैं, सेबी की बाहरी समितियों का हिस्सा बन जाते हैं. पांडे ने कहा कि ऐसे विशेषज्ञों को रखने का उद्देश्य विचारों की विविधता प्राप्त करना है और अंत में यह आम जनता सहित हितधारकों की भीड़ है जो विनियमन बनाने में मदद करती है. उन्होंने कहा, “समितियों में भी बिल्कुल विपरीत रुख हैं, क्योंकि अलग-अलग मध्यस्थ हैं. अगर मान लें कि कुछ लोग कुछ खास चाहते हैं, तो कुछ लोग इसका विरोध भी करना चाहेंगे और उनके पास इसके लिए अलग-अलग तर्क हो सकते हैं.
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