Maharashtra Government Controversy : देवेंद्र फडणवीस ने जब से राज्य में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की बात कही है तब से सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. वहीं, अब भाषा समिति ने भी सीएम से फैसला वापस लेने की कही है.
Maharashtra Government Controversy : महाराष्ट्र में कक्षा पहली से लेकर पांचवीं तक हिंदी भाषा को अनिवार्य करने के फैसले पर शिक्षा जगत, बौद्धिक, भाषाविदों से लेकर राजनीतिक दलों की तरफ से प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है. इस मुद्दे न सिर्फ भाषा की अस्मिता को लेकर सवाल खड़ा किया है बल्कि मराठी बनाम हिंदी का विवाद भी चरम पर पहुंचा दिया है. इसी बीच भाषा आयोग ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Chief Minister Devendra Fadnavis) से कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य बनाने वाले फैसले को रद्द करने का आग्रह किया है.
मराठी अनिवार्य रूप से बनी रहेगी
भाषा आयोग की तरफ से आग्रह करने के बाद देवेंद्र फडणवीस ने रविवार को राज्य में हिंदी भाषा को थोपे जाने की चिंताओं को खारिज करते हुए कहा कि राज्य में मराठी भाषा अनिवार्य रूप से बनी रहेगी. बता दें कि राज्य सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत तीन भाषा के फॉर्मूले को लागू करने के लिए हिंदी को मंजूरी दे दी थी. इस फैसले के मुताबिक, अंग्रेजी और मराठी माध्यमों में कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी अनिवार्य बना दिया है. वहीं, भाषा परामर्श समिति के प्रमुख लक्ष्मीकांत देशमुख ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में दावा किया कि राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT) ने हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए उनके विचारों और सुझावों पर विचार नहीं किया है.
SCERT ने नहीं किया सुझाव पर विचार
इसके अलावा पत्र में कहा गया है कि भाषा परामर्श समिति ने SCERT को सुझाव दिए हैं उस पर उन्होंने गंभीरता के साथ विचार नहीं किया है. पत्र में यह भी कहा गया है कि सरकार ने भाषा संबंधी मामलों पर सलाह देने के लिए भाषा परामर्श समिति नियुक्त की है लेकिन एससीईआरटी ने कोई विचार नहीं किया है. इसके अलावा पत्र में यह भी कहा गया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में किसी भी भाषा को अनिवार्य या थोपा नहीं जाएगा. इसके विपरित NEP गया कि शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जानी चाहिए. यही वजह है कि तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य किया जाना चाहिए. लेकिन भाषा समिति ने कहा कि किसी भी स्तर पर हिंदी को अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए. इसकी जगह हिंदी को विकल्प के रूप में रखना चाहिए. पत्र में यहां तक कहा गया है कि यह रोजगार, आय, प्रतिष्ठा और ज्ञान की भाषा नहीं है.
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