Spymaster of India: एक ऐसा नाम जो दुश्मनों के दिल में खौफ और देशवासियों के दिल में गर्व भरता है – अजीत डोभाल. एक जासूस से लेकर भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) बनने तक का उनका सफर किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं. यह कहानी है साहस, बुद्धिमत्ता और राष्ट्रभक्ति की, जिसमें सच्चाई किसी ब्लॉकबस्टर से कम नहीं लगती.
Spymaster of India: कहते हैं कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जिन्हें पढ़ते वक्त लगता है कि ये किसी फिल्म की स्क्रिप्ट है – लेकिन अजीत डोभाल की कहानी असलियत की जमीन पर खड़े उस नायक की है, जिसने बिना लाइमलाइट में आए, देश के हर नागरिक को निडर होकर जीने का हक दिलाया.
एक ऐसा नाम जो दुश्मनों के दिल में खौफ और देशवासियों के दिल में गर्व भरता है – अजीत डोभाल. देश की सुरक्षा की दुनिया में उनका नाम एक प्रतीक बन चुका है – प्रतीक साहस का, चतुराई का, और अडिग राष्ट्रभक्ति का. यह कहानी सिर्फ एक जासूस की नहीं है, बल्कि एक ऐसे रणनीतिक योद्धा की है, जिसने पर्दे के पीछे रहकर दुश्मनों की सबसे खुफिया चालों को भी मात दी. अजीत डोभाल ने वो रास्ता चुना जो जोखिम से भरा था, लेकिन हर मोड़ पर उन्होंने देश को सुरक्षित रखने की शपथ को पहले रखा. पाकिस्तान में सात साल तक अंडरकवर एजेंट बनकर रहना हो, स्वर्ण मंदिर के भीतर आतंकवादियों के बीच घुसपैठ करना हो, या फिर श्रीलंका और म्यांमार में खतरनाक अभियानों की अगुवाई – हर मिशन में उनकी मौजूदगी एक अदृश्य ढाल बनकर उभरी.
2014 में जब उन्हें भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया, तब से उन्होंने न सिर्फ रणनीति के स्तर पर भारत को मजबूती दी, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ देश की नीति को भी एक नए रूप में ढाला. उरी और पुलवामा जैसे हमलों के बाद जिस तरह भारत ने निर्णायक जवाब दिया, उसमें डोभाल की भूमिका निर्णायक और ऐतिहासिक रही. उनका जीवन हर भारतीय युवा के लिए एक मिसाल है – कि देशसेवा सिर्फ सीमा पर बंदूक लेकर नहीं, दिमाग, साहस और कूटनीति से भी की जा सकती है.
एक शांत शहर से उठी गर्जना
उत्तराखंड के शांत पहाड़ों में बसा पौड़ी गढ़वाल – एक छोटा सा शहर, जहां 1945 में एक ऐसा बालक जन्मा जिसने आगे चलकर देश की सुरक्षा की परिभाषा ही बदल दी. उसका नाम था- अजीत डोभाल. एक फौजी पिता के बेटे, जिनके घर में देशभक्ति सांसों की तरह बहती थी. पढ़ाई मिलिट्री स्कूल अजमेर से, फिर आगरा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर्स. लेकिन अजीत की आंखों में कुछ और ही सपना पल रहा था- देश के लिए वो करना जो कोई सोच भी न सके.
1972: जब उन्होंने वो राह चुनी, जो अंधेरे से होकर जाती थी

कहते हैं, कुछ हीरो शोर नहीं मचाते, बस इतिहास रचते हैं. अजीत डोभाल 1972 में इंडियन पुलिस सर्विस (IPS) में शामिल हुए, लेकिन उनका असली मिशन पुलिस चौकियों से नहीं, खुफिया गलियों से शुरू हुआ. जल्द ही वे इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) से जुड़ गए. यहाँ से उनकी ज़िंदगी किसी थ्रिलर फिल्म की तरह तेज़ हो गई.
उन्होंने पाकिस्तान में लगभग सात साल तक अंडरकवर एजेंट के तौर पर काम किया. मुसलमान बनकर आतंकवादी गुटों में पैठ बनाई और भारत के लिए बेहद संवेदनशील जानकारी जुटाई. जिस धरती पर उनका एक गलत कदम उन्हें मौत के मुंह में ले जा सकता था, वहीं उन्होंने चुपचाप भारत की जीत की नींव रखी.
अमृतसर से श्रीलंका तक: हर ऑपरेशन में देश की जीत

1980 के दशक में पंजाब सुलग रहा था. खालिस्तान आंदोलन ने पूरे राज्य को आतंक के साये में डाल दिया था. डोभाल ने बहादुरी के साथ आतंकियों के बीच खुद को पाकिस्तानी एजेंट के रूप में स्थापित किया और स्वर्ण मंदिर के अंदर उनकी रणनीति जानकर सेना को सूचित किया. इस गुप्त जानकारी के बल पर ऑपरेशन सफल रहा और कई जानें बचीं. बाद में श्रीलंका में LTTE और म्यांमार के उग्रवादियों के खिलाफ भी उन्होंने गुप्त अभियानों की अगुवाई की. म्यांमार में 2015 में भारतीय सेना द्वारा की गई सीमा पार कार्रवाई- जिसमें आतंकी शिविर तबाह किए गए- उसकी रणनीति के पीछे भी वही थे. वो बताते हैं कि देशसेवा केवल बंदूक से नहीं, दिमाग और रणनीति से भी चलता है.
इन सारे अभियानों में वो परदे के पीछे थे, लेकिन असर ऐसा था कि दुश्मन कई बार उनके नाम से ही सहम उठते थे.
2014: जब उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा की बागडोर संभाली

बॉलीवुड का एक बहुत फेमस डायलॉग है की, जब कोई खामोश खिलाड़ी मोर्चा संभालता है, तब शांति भी ताकत की तरह महसूस होती है. कुछ ऐसा हि 2014 के बाद हुआ जब नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अजीत डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) नियुक्त किया गया. यहीं से भारत की सुरक्षा नीति में बड़ा बदलाव शुरू हुआ. पठानकोट, उरी और पुलवामा जैसे आतंकी हमलों के बाद देश ने पहली बार आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की नीति अपनाई- सर्जिकल स्ट्राइक्स और एयरस्ट्राइक्स के रूप में. इन हरकतों के पीछे सोच और रणनीति अजीत डोभाल की ही थी.
नाम से नहीं, काम से पहचाना जाता हैं ‘स्पाईमास्टर ऑफ इंडिया’
डोभाल मीडिया से दूर रहते हैं. प्रेस कॉन्फ्रेंस या कैमरे की चमक से नहीं, वे ‘इंटेलिजेंस’ की स्याही में अपने दस्तखत करते हैं. उन्हें 1988 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया – एक ऐसा वीरता सम्मान जो आमतौर पर सेना को दिया जाता है, लेकिन उन्हें नागरिक के तौर पर मिला. इससे बड़ी मान्यता और क्या हो सकती है?
उनके बारे में कहा जाता है कि वे ‘स्पाईमास्टर ऑफ इंडिया’ हैं – एक ऐसा योद्धा जो बिना वर्दी के भी पूरी व्यवस्था का सबसे मजबूत अंग बन चुका है.
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