Home Latest नाम का अजब खेलः गलत को पास और सही को कर दिया फेल, 20 साल बाद पता चला तो हाईकोर्ट में दी चुनौती

नाम का अजब खेलः गलत को पास और सही को कर दिया फेल, 20 साल बाद पता चला तो हाईकोर्ट में दी चुनौती

by Sanjay Kumar Srivastava
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Uttarakhand High Court

उत्तराखंड के कुमाऊं विश्वविद्यालय का एक रोचक मामला सामने आया है. संक्षेप में नाम होने के चलते कुमाऊं विश्वविद्यालय प्रशासन गच्चा खा गया और उसने चयनित उम्मीदवार की जगह उसी नाम से मिलते दूसरे उम्मीदवार की नियुक्ति कर दी.

Nainital: उत्तराखंड के कुमाऊं विश्वविद्यालय का एक रोचक मामला सामने आया है. संक्षेप में नाम होने के चलते कुमाऊं विश्वविद्यालय प्रशासन गच्चा खा गया और उसने चयनित उम्मीदवार की जगह उसी नाम से मिलते दूसरे उम्मीदवार की नियुक्ति कर दी. यह मामला अब जाकर 20 साल बाद खुला, जब चयनित उम्मीदवार को इसका पता चला. अब यह मामला उत्तराखंड हाईकोर्ट में चला गया है.

विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग में व्याख्याता पद का मामला

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कुमाऊं विश्वविद्यालय से दो दशक पहले की गई नियुक्ति के बारे में दस्तावेज पेश करने को कहा है. एक जनहित याचिका में दावा किया गया था कि सही उम्मीदवार के बजाय गलत व्यक्ति का चयन किया गया था. पवन कुमार मिश्रा ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि 2005 में विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग में व्याख्याता के पद के लिए उनके चयन के बावजूद, उनके स्थान पर प्रमोद कुमार मिश्रा को भर्ती किया गया, क्योंकि उनका नाम भी उनसे मिलता-जुलता था. दोनों ने अपने नाम का संक्षिप्त नाम पी के मिश्रा लिखा.

जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश गुहानाथन नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने विश्वविद्यालय को नियुक्ति से संबंधित सभी दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया है. गाजियाबाद के इंदिरापुरम में रहने वाले याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि यह नियुक्ति तत्कालीन रजिस्ट्रार, डीन (विज्ञान), विभागाध्यक्ष (भौतिकी) और विश्वविद्यालय के अन्य कर्मचारियों की मिलीभगत से की गई थी. याचिका में कहा गया है कि चयनित उम्मीदवार के स्थान पर नियुक्त व्यक्ति अभी भी विश्वविद्यालय में भौतिकी पढ़ा रहा है.

पीड़ित ने विश्वविद्यालय प्रशासन से कई बार किया संपर्क, लेकिन नहीं निकला कोई नतीजा

याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्हें कथित धोखाधड़ी के बारे में लगभग 20 साल बाद नवंबर, 2024 में पता चला. इसके बाद उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति और मुख्यमंत्री को न्याय की मांग करते हुए एक पत्र लिखा, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला. पीड़ित ने बताया कि उसने कई बार विश्वविद्यालय प्रशासन से संपर्क किया, लेकिन हर बार आश्वासन देकर लौटा दिया जाता रहा.

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