'तुम मुझे अपनी कसम दे कर कहो...' पढ़ें महशर आफरीदी के शेर.
तेरे होंठों के तबस्सुम का तलबगार हूं मैं, अपने गम बेच दे रद्दी का खरीदार हूं मैं.
जमीं पर घर बनाया है मगर जन्नत में रहते हैं, हमारी खुश-नसीबी है कि हम भारत में रहते हैं.
मुझे जिस हाल में छोड़ा उसी हालत में पाओगी, बड़ी ईमान-दारी से तुम्हारा हिज्र काटा है.
तू मिरे लम्स की तासीर से वाकिफ ही नहीं, तुझ को छू लूं तो तिरे जिस्म का हिस्सा हो जाऊं.
जमीं पर घर बनाया है मगर जन्नत में रहते हैं, हमारी खुश-नसीबी है कि हम भारत में रहते हैं.