'मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग...' पढ़ें राहत इंदौरी के चुनिंदा शेर.
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तों, दोस्ताना जिंदगी से मौत से यारी रखो.
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग, गीली जमीन खोद के फरहाद हो गए.
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है, उम्र गुजरी है तिरे शहर में आते जाते.
ये हवाएं उड़ न जाएं ले के कागज का बदन, दोस्तों मुझ पर कोई पत्थर जरा भारी रखो.
इक मुलाकात का जादू कि उतरता ही नहीं, तिरी खुशबू मिरी चादर से नहीं जाती है.
इरोज पत्थर की हिमायत में गजल लिखते हैं, रोज शीशों से कोई काम निकल पड़ता है.