'दलीलें छीन कर मेरे लबों से...' पढ़ें खुर्शीद अकबर के मुर्दे में भी जान फूंक देने वाले शेर.
साहिल से सुना करते हैं लहरों की कहानी, ये ठहरे हुए लोग बगावत नहीं करते.
कुरआन का मफ्हूम उन्हें कौन बताए, आंखों से जो चेहरों की तिलावत नहीं करते.
दलीलें छीन कर मेरे लबों से, वो मुझ को मुझ से बेहतर काटता है.
चेहरे हैं कि सौ रंग में होते हैं नुमायां, आईने मगर कोई सियासत नहीं करते.
यहां तो रस्म है जिदों को दफ्न करने की, किसी भी कब्र से मुर्दा कहां निकलता है.