'मुझे मायूस भी करती नहीं है...' पढ़ें जावेद अख्तर के चुनिंदा शेर.
मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था, मिरे अंजाम की वो इब्तिदा थी.
यही हालात इब्तिदा से रहे, लोग हम से खफा खफा से रहे.
मुझे मायूस भी करती नहीं है, यही आदत तिरी अच्छी नहीं है.
गैरों को कब फुर्सत है दुख देने की, जब होता है कोई हमदम होता है.
बहाना ढूंडते रहते हैं कोई रोने का, हमें ये शौक है क्या आस्तीं भिगोने का.